हर शाम ये सूरज ढलता है
जाते हुए लम्हों से नजाने
आखिर क्यों तू डरता है
साथ तेरे पास तेरे
कुछ नहीं रह जायेगा
सूरज की तरह एक दिन
तू भी ढल जाएगा
रात में,आकाश में
ब्रह्माण्ड में
कही तू भी
छिप जायेगा
परंतु उस हालात में
फिर भी तू मुस्कुराएगा!!
तुम्हें मुस्कुराना ही होगा
कही दूर किसी और का
जीवन चलाना ही होगा
आसमान का तारा बन
एक नया सौरमंडल
बनाना ही होगा
तभी तू महान
कहलाएगा
अंधेरी रात के बाद
फिर एक नया सवेरा आएगा।।
सवेरा तो आता ही है हर रात के बाद पर अपना नया सवेरा लाना युगपुरुष का ही काम होता है ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब भावपूर्ण रचना ..
जी शुक्रिया:-)
हटाएंबहुत ही प्रेरणादायी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी:-)
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 24वीं पुण्यतिथि - सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंजी जरुर,आपका आभारी:-)
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