महंगाई में हालत हो गई खस्ता।
नहीं रहा अब कुछ भी सस्ता,
महंगे हो गये अनाज के दाम।
चारों तरफ है महंगाई का नाम,
महंगी हो गई रोटी, दाल।
अब बचे सिर्फ सिर के बाल,
महंगाई ने कर दिया दिल बेहाल।
ऐसी होती महंगाई की मार,
गरीब की है दुहाई।
बंद करो ये महंगाई,
आती तो मुझे रुलाई।
कब ख़त्म होगी महंगाई।।
बहुत सही कहा है आपने महंगाई तो सुरसा के मुहं कि तरह बढती हि जा रही है !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्दों में महंगाई पर सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post पिता
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जी ज़रूर , टिप्पणी के लिए धन्यवाद
हटाएंदस साल से सरकार नित नयी तारीख कम होने के लिए दे रही है,अभी कुछ और इंतजार कीजिये.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुंदर और यथार्थ पर आधारित
जवाब देंहटाएंधन्यवाद:-)
हटाएंसत्य व यथार्थ पर खरी
जवाब देंहटाएंघर लौटे हम काम से
जवाब देंहटाएंघर आकर फिर काम
इतनी महंगाई बढ़ गई है
तो फिर कैसे करे आराम
खुद ही हसना खुद ही रोना
हटाएंइस महंगाई से बचकर रहना
जी जरुर
हटाएंबहुत खूब
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जवाब देंहटाएंमां मुझे मत मार
कर दे मुझपे उपकार
दे मुझे जीने का अधिकार
देखने दे संसार
मां मुझे मत मार
मुझे चाहिए प्यार-दुलार।
✍️अरूणेश कुमार गोलू
बहुत खूब,भावपूर्ण
हटाएंWonderful to your kaviuta
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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