बात बड़ी है पुरानी,
थी प्रकृति की भी कहानी।
आज आपको भी है सुनानी,
एक ज़माने में प्रकृति थी रानी।
इस धरती पर उसका राज था,
मानव पर उसे बड़ा विश्वास था।
परन्तु अपने फायदे के लिए मानव,
बन बैठा इस धरती का दानव।
जंगलों का कर सफ़ाया,
अपना घर है बनाया।
इतना करके भी ना माना,
पशु - पक्षियों को भी मारा।
अपने फायदे के लिये,
प्रदूषण को भी दिया बढ़ावा।
अपनी इस करनी पर,
अब होता है पछतावा।
अपनी इस अभी भी वक़्त है, हे मानव!
सुन लो मेरी ये पुकार,
रोक दो ये हाहाकार,
नहीं तो छा जायेगा इस धरती पर अंधकार!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संसद पर हमला, हम और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सटीक !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट भाव -मछलियाँ
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सुन्दर सटीक !
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