देखो काले बादल आये ।
नभ पर ये जमकर छाये ।।
गरजकर , ये बिजली कड़काते ।
संग में ये अपने वर्षा भी लाते ।।
देखो काले बादल आये ।
गर्मी को ये दूर भगाए ।।
मौसम को भी खुशहाल ।
खेतों में हरियाली फैलायें ।।
देखो काले बादल आये ।
बंजर को भी उपजाऊ बनाते ।।
कहीं - कहीं पर ये बाढ़ भी लाते ।
परन्तु अकाल को दूर भगाते ।।
देखो काले बादल आये ।
प्रकृति को भी ये भाये ।।
इस धरती को भी नहलाये ।
देखो काले बादल आये ।।
अब तो कहर बरपा रहे हैं ये काले बादल ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है ...
जी सही कहा आपने फ़िलहाल बादल तो कहर बरपा ही रहें हैं , आभार
हटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंnice poem...gud creation
जवाब देंहटाएंthanks sir I got A+ in file activity
जवाब देंहटाएंanand
जवाब देंहटाएंkyuki mera to school ka kam ho gya
सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएं"बादल उस ओर गये "
बूँद बूँद को तरस रहे हम
बादल उस ओर गये|
आम के पेड़ वहीं फिर
भी बादल उस ओर गये|
सपनों के खरगोश हैं भूखे
बादल उस ओर गये|
घास डालता कौन इन्हें जब
बादल उस ओर गये|
सूखे दिनों की आशंका ले
बादल उस ओर गये|
मेघों की घनघोर छ्टा पर
बादल उस ओर गये||
Is
जवाब देंहटाएंIs kavita ke kavi kaun hein..??
जवाब देंहटाएंKavita ka arth
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